उन्नाव: शक, तनाव और अविश्वास ने निगल लिया हंसता-खेलता परिवार—पति ने पत्नी और दो बेटियों की हत्या कर खुद दी जान
उन्नाव: शक, तनाव और अविश्वास ने निगल लिया हंसता-खेलता परिवार—पति ने पत्नी और दो बेटियों की हत्या कर खुद दी जान
*उन्नाव, अचलगंज*— जिले के *साहबखेड़ा गांव* में हुई दिल दहला देने वाली घटना ने हर किसी को झकझोर कर रख दिया है। एक तरफ सोशल मीडिया पर खुशहाल नजर आता परिवार, तो दूसरी ओर घर के भीतर दहशत, शक और तनाव की परतें—आख़िरकार *अमित* ने *शक और अविश्वास के दलदल में डूबकर अपने पूरे परिवार को खत्म कर दिया।*
*घर के भीतर से मिलीं चार लाशें—हकीकत ने सबको झकझोरा*
सोमवार सुबह गांव के लोगों ने *अमित के घर की खिड़की से झांककर फांसी पर लटका शव* देखा। सूचना मिलते ही छोटा भाई *संदीप छत के रास्ते घर में घुसा* और दरवाजा खोला। अंदर का मंजर दिल दहलाने वाला था—*अमित फांसी के फंदे पर झूल रहा था*, और पास की चारपाई पर *पत्नी गीता (30), बेटियां खुशी (10) और निधि (6)* मृत अवस्था में पड़ी थीं।
*सीसीटीवी कैमरों और शक की कहानी*
परिजनों और पुलिस जांच में यह बात सामने आई कि *अमित को लंबे समय से पत्नी गीता के चरित्र पर शक था।* रोज-रोज के झगड़े से तंग आकर उसने *तीन महीने पहले घर के बाहर तीन सीसीटीवी कैमरे* लगवाए थे। वह रोजाना फुटेज चेक करता था, और *मोबाइल पर सीसीटीवी एक्टिवेट* था। पुलिस ने बताया कि *एक कैमरा घटना से तीन दिन पहले बंद हो गया था*, बाकी दो चालू थे—लेकिन *फुटेज में किसी बाहरी व्यक्ति के आने-जाने का कोई संकेत नहीं मिला*।
*पुराना मुकदमा और घरेलू कलह*
*2022 में गीता ने गांव के ही तीन लोगों पर छेड़छाड़ और मारपीट का केस दर्ज कराया था*, जिससे miscarriage भी हुआ था। उसी केस की *27 मई को अदालत में पेशी थी।* पुलिस जांच में सामने आया कि *घटना वाले दिन भी पति-पत्नी में इसी मामले को लेकर विवाद हुआ था।* चर्चा है कि गीता केस में समझौते की बात कर रही थी, जिससे अमित और भड़क गया।
*चाकू से आत्महत्या की कोशिश और सोशल मीडिया की दुनिया*
ग्रामीणों ने बताया कि कुछ दिन पहले *गीता ने खुद पर चाकू से वार कर आत्महत्या का प्रयास किया था*, हालांकि गंभीर चोट नहीं आई। वहीं दूसरी ओर, *अमित सोशल मीडिया पर बेहद सक्रिय* था। *रील बनाना, बच्चों और पत्नी के साथ वीडियो पोस्ट करना* उसकी आदत बन गई थी। पुलिस जांच में मिले मोबाइल डेटा में *ऐसे कई वीडियो मिले हैं जो परिवार को खुशहाल दर्शाते हैं।* यही विरोधाभास इस घटना को और अधिक पीड़ादायक बनाता है।
*गांव में मातम, परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल*
*पोस्टमार्टम के बाद जब चारों शव गांव पहुंचे*, तो कोहराम मच गया। *दादी रीता रानी और दादा उमेशचंद्र* बेसुध हो गए। भाई *संदीप और अजीत* का कहना है कि शुरुआती सालों में सबकुछ ठीक था, लेकिन बाद में शक और अविश्वास ने इस परिवार को खा लिया।
*नन्हीं बच्चियों के सपनों का अंत*
बड़ी बेटी *खुशी कक्षा दो* में पढ़ती थी और छोटी *निधि केजी* में। दोनों एक स्थानीय कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ती थीं और बेहद होनहार थीं। *किसी को क्या पता था कि उनके सपनों की उड़ान इस तरह दम तोड़ देगी?*
*अब सवाल उठते हैं:*
* क्या समय रहते काउंसलिंग या पारिवारिक हस्तक्षेप होता तो चार जानें बच सकती थीं?
* सोशल मीडिया की चमकदार दुनिया के पीछे छुपा ये अंधेरा हम कब देखना शुरू करेंगे?
* क्या घरेलू विवादों को 'सामान्य झगड़ा' समझना हमारी सबसे बड़ी चूक है?
*यह मामला सिर्फ एक पुलिस केस नहीं, बल्कि एक सामाजिक चेतावनी है। रिश्तों में संवाद की कमी, शक और मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी—ये सब मिलकर एक पूरा परिवार लील सकते हैं।*
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